अगर आप आदिवासी हैं तो यह जानना जरुरी है की कैसे हमारे पुरखों ने संघर्ष किये और हम तक रीती रिवाज़ को पोहचए।
कुँड़ुख़र या ओराओं छोटा नागपुर क्षेत्र का एक आदिवासी समूह है। ओराँव अथवा उराँव नाम इस समूह को दूसरे लोगों ने दिया है। अपनी लोकभाषा में यह समूह अपने आपको 'कुरुख' नाम से वर्णित करता है। अँगरेजी में 'ओ' अक्षर से लिखे जाने के कारण इस समूह के नाम का उच्चारण 'ओराँव' किया जाता है; बिहार/छत्तीसगढ़ में 'उराँव' नाम का प्रचलन अधिक है।
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ओराओं आदिवासी नृत्य करते हुए |
जय धर्मेश ,जोहर ,नमस्कर मेरा नाम रोशन टोप्पो,आप सभी को इस ब्लॉग में स्वागत है। आज मैं आप सभी को हमारे आदिवासियों की प्राचीनतम परंपरा रीती रिवाज़ से रूबरू करने जा रहा हूँ। इस आर्टिकल में हमारा क्या क्या अतीत में था और अभी कैसे वह सब लुप्त होता जा रहा है। इसीलिए आपको इनसब को जानना जरुरी है चलिए सुरु करते हैं।
कुँड़ुख़ (ओराओं) आदिवासियों की जीवन शैली :-
- कुँड़ुख़ लोगों की अपनी भाषा है, जिसे कुँड़ुख़ -भाखा (भाषा) कहा जाता है, खुद का धर्म है जिसे आदी-धरम / इसे सरना के नाम से भी जाना जाता है.
- खुद की सामाजिक-व्यवस्था है जिसे पढ़हा -ब्यवस्था (राजी -पढ़हा) के नाम से जाना जाता है, खुद की परंपरा है जिसे कुँड़ुख़-चेलो के रूप में जाना जाता है. खुद का समाज-कानून है जिसे '' पढ़हा -ऐने-कानुन'' के नाम से जाना जाता है।
पढ़हा -ब्यवस्था :-
- यह एक प्राचीन, पारंपरिक, सामाजिक-धार्मिक, सांस्कृतिक और न्यायिक संगठन है जो कि कुँड़ुख़ लोगों का है।
- इसे एक्स-पोस्ट-फैक्टो (EX-POST FACTO) संगठन के रूप में भी जाना जाता है। यह न केवल पारंपरिक संगठन है बल्कि यह PARENTAL ORGANIZATION (माता पिता का ) पारम्परिक संगठन भी है।
- यह कुँड़ुख़ लोगों के स्वशासन-सरकार का एक प्राचीन लोकतांत्रिक स्वरूप है ।
- सिंधु-घाटी सभ्यता कुँड़ुख़ लोग लोकतंत्र के निर्माता थे। यह लोकतंत्र अभी भी कुँड़ुख़ समाज में मौजूद है । लोकतंत्र कुँड़ुख़ स्वशासन की आत्मा है।
जॉख़-एडपा आरा पेलो-एडपा:-
- यह एक प्राचीन, पारंपरिक, आदिवासी कुँड़ुख़ समाज के नौजवान की शैक्षिक संस्था है।
- यह कुडुख सामाजिक ब्यबस्था का एक अविभाज्य हिस्सा भी है।
- यह एक प्राचीन शिक्षा प्रणाली है जिसमें कुँड़ुख़ समाज के लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए अलग-अलग दो डॉर्मिटरी रखा गया हैं।
- कई इतिहासकारों ने इसे (BOYS DORMITORY & GIRLS DORMITORY) के रूप में चित्रित किये है। मूल रूप से छात्रों की तीन श्रेणियों को छात्रावास में प्रवेश दिया जाता हैं:-
1. सन्नी टूवर जोंखर-पेलर (छोटी उम्र के छात्र)
2. मझिला टूवर जोंखर-पेलर (मध्य आयु के छात्र)
3. कोहा टूवर जोंखर-पेलर (बड़ी उम्र के छात्र)
मदइत (सहयोग ):-
- गाँव के किसी व्यक्ति विशेष के सामूहिक कार्य में यह अयोग्य मदद है। यह एक वर्ष/महीना/हप्ता में एक बार किसी व्यक्ति को किसी विशेष कार्य के लिए दिया जा सकता है। इस तरह की कार्य-प्रणाली को मूल रूप से पारस्परिक विकास के लिए अनुकूलित किया गया था।
- यह कार्य-प्रणाली कई प्राचीन स्मारकों और किलों को स्थापित करने में मदद करने में सक्षम थी । यह कार्य प्रणाली अब भी कुँड़ुख़ आदिवासी के बिच मौजूद है।
पंचा :-
- यह कुँड़ुख़ ग्रामीणों की सामूहिक या पारस्परिक कार्य प्रणाली है। इस प्रणाली में प्रत्येक परिवार का एक सदस्य गाँव-पंचों में जाकर गाँव के किसी व्यक्ति विशेष के काम में मदद करते है ।
- काम की इस प्रणाली के माध्यम से लोगों के बीच आपसी तालमेल बढ़ता है, इसे पारस्परिकता विकास भी कहा जाता है। पंचा कुँड़ुख़ लोगों की ग्राम में पारस्परिक संपत्ति का बैंक हुआ करता था। कुछ सरकारी नियम के कारण यह प्रणाली दिन-प्रतिदिन तेजी से मर रही है ।
कुँड़ुख़ लोगों की आर्थिक प्रणाली:-
- कुडुख लोगों की अपनी आर्थिक व्यवस्था है। अर्थात् विशुद्ध रूप से कृषि और वन प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है।
- प्राचीन काल में गाँव के कुडुख लोग एक साथ काम करते थे और जो कुछ भी कमाते थे उसे गाँव के आपसी भण्डारण में रखा जाता था और आवश्यकता के अनुसार गाँव के सदस्यों को अर्जित संपत्ति दी जाती थी।
- लेकिन अब आधुनिक युग में लोग जितना कमाएंगे उतना कमाएंगे।
कुँड़ुख़र महापुरुषों के नाम :
2. हलधर और गिरधर
4. पंडित अयाता उरांव (आना आदि मंजूरना मलेका के लेखक )
5. डॉ कार्तिक उरांव
6. वकील भीखराम भगत
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पुरखा पचवल देवचरण भगत |
8. हदरा और मद्रा
9. सिंगी दाई
10. चम्पू दाई
11. फुलो दाई
12. झानो दाई
13. बिरसो दाई
14. बुधनी दाई
Prayas jari rakhiye🙌
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