स्वाधीन भारत में आदिबासी उपरे अत्याचार कैसेन कैसेन होते अवाथे ?

स्वाधीन भारत में  आदिबासी उपरे अत्याचार !!


जय धर्मेश ,जोहर ,नमस्कर 🙏

                  मेरा नाम रोशन टोप्पो,आप सभी  को इस ब्लॉग में स्वागत है। आज के इस आर्टिकल हमलोग जानेंगे कैसे स्वाधीन भारत  में अभी भी हमरे आदिवासी भाई और बहिन पे अत्याचार हो रहा है , चलिउये सुरु करते हैं 



भारत बर्ष में अगर आदिवासी मन केर बात करेक गेले , अंग्रेज़ सरकार केर समय में अच्छा जीवन रहे  । अंग्रेज़ मन भारत केर मूलनिवासी मन लगीं बहुत सारे आइसेन योजना मान बनय रहें जेकर में की आदिवासी मन उन्नति केर कगार बाटे बढ़ते जात रहें  
जब तक अंग्रेज मन रहयं तब तक सब ठीक चालत रहे लेकिन जैसेन हैं सता ब्राह्मण सरकार केर हाथ में आय गेलाक तबसे आदिवासी उपरे अत्याचार सुरु होवेक लग्लक  । से लगीन अंग्रेज सरकार ब्राह्मण सारकार से ढेर गुनना अच्छा रहे  


                 हिन्दु मन केर महान नेता और पंडित स्वामी बिबेकानन्द 23.6 .894 के महीशुर राइज केर राजा पासे गोटेक चिठी लिख रहैं। उकर में उ लिख रहैं, “ब्राह्मण पुरोहित और अधिकारी मन (हिन्दु धरम केर) हरिजन और आदिबासी मनके सैकड़ो बरस रवैइंद के रइख हैं। उ बेचारा मन आखिर में भुलाए जाए हैं जे उमन आदमी हिकैं।” इ बात से मालुम होवेला जे, उ खन आदिबासी मन उपरे देश भइर में और गांगपुर में हों, कतना अन्याय और अत्याचार होवत रहे। सच तो इ हिके जे अँग्रेज मन आदिबासी मन उपरे जेतना अन्याय - अत्याचार करत रहैं, सेकर ढेइर गुना बगरा अन्याय- अत्याचार देशी हिन्दु राजा, जमींदार, गाझु पुजारी और उमन केर चमचा - कर्मचारी मन करत रहैं। इकर में उमन मिलाल रहैं । उ मनक जुलुम एसेन रहे ।


खेत-जमिन लुट :

                  आदिबासी मन जंगल झाड़ कइट के, गड॒हा-ढ़ोड़हा भइर के खेत-जमिन बनै रहैं। अँग्रेज सरकार 869 में “छोटा नागपुर टेन्यर एक्ट” बनालक। इकर से “खुँटकटी” और “भुंइहारी” जमिन उपरे आदिबासी मन केर दाबी के, सरकारी मँजुरी मिलगेलाक। मगर 880 में ३ आइन के बदइल के गे आदिबासी जमींदार मन केर नाँव में, समुचा जमींदारी के पर्चा-पट्टा कइर देवाल गेलाक। तब जमींदार मन गैर आदिबासी गांझु मन केर नाम में गाँव जको केर जमिन के पट्टा कइर देलैं। अब इ जमीदार, गांझु, पुजारी, कर्मचारी केर चौकड़ी आदिबासी मन केर बेस-बेस उपजाऊ जमिन मन के छल-कपट कइर के कच्छैरी में झुठ बयान देइ के, झुठा साक्षी ठढुवाय के
और दोसरो रकम से फसाए के अपन नाम में कइर लेलैं। चाहे दोसर हिन्दु मन केर नाम में करूवाय देलैं। एसने आदिबासी मन अपन जमिन हेराएक लगलें और सुखबासी बनेक लगलैं।
 

मालगुजारी :

            गांझु और जमींदार मन अँग्रेज सरकार के देवेक लगिन चासी मन सेमालगुजारी असुल करत रहैं। मगर उमन चालाकी कइर के आदिबासी मन ।क्‍ठीनले, दोसर मनसे, दुइ गुना मालगुजारी लेजात रहैं। उमन के रसिद हों नी देत रहैं। पाछे उमन के धमकाय के साल में 2-3 बेर मालगुजारी लेजात रहैं। कभी कभी उमन मालगुजारी मनमौजी बढ़ाए देवात रहैं।
 

बेठी - बेगारी :

ओहे हिन्दु चौकड़ी आदिबासी मन के अपन घरेलु काम करूवात अपन पालकी बोहेक, अपन घर-मकान बनाएक, अपन बाँध-खेत बनाएक, जोतेक, बुनेक और काटेक-मिसेक लगिन उमन के जबराइ लेजात
रहैं। जहाँ जहाँ रास्ता, पोखरा और बांध बनत रहे, तहाँ तहाँ आदिबासी मन जाएके बेगार मजौरी, अपन खायके काम करत रहैं। उमन के अपन खेत- बारी जोतेक, कोड़ेक लइन समय नी भेटात रहे।
 

 
बेआइन चन्दा :

आदिबासी मन मालगुजारी तो देवात रहैं। उकर उपरे हर साल रकम रकम चन्दा देई के हैरन होवात रहैं। गांझुमन हरेक साल हरेक गाँव से सलामी लगान और खस्सी असुल करत रहैं। हरेक घर से “हॉँड़ी कर” उघाल जात रहे। थाना, डाकघर मन बनाएक लगिन चन्दा लेजाल जात रहे।
हरेक हिन्दु परब में पुजारी मन घरघर बुइल के पुजा पाठ ले आदिबासी मन से हों चन्‍्दा लेजात रहैं; जौभी कि उमन हिन्दु धरम नी मानत रहैं।
 

रिन बरन :

               अन्ध बिश्वास केर चलते आदिबासी मन दुःख तकलीफ आले हें भुत लइग हे, सोचत रहलैं । तलेक सोखा - ओझा बोलाए के भुत मनाएक तले मुर्गी चाहे बकरा पुजात रहैं । घरे इ चीज नी रहले महजान मन से रिन-बरन करत रहैं। मालगुजारी देवेक, बिहा-शादी करेक, जरिबना भरेक और अनाज नी पुरले किनेक लनिग हों रिन लेजात रहैं। महजान मन सलाना 70% सुध, चाहे जमिन बाँधा में लेजात रहैं। आदिबासी मन रिन घुराएक नी पारले अपन जमिन हेरात रहैं; चाहे रिन देवाइया केर बन्धुवा मजदुर बइन जात रहैं। सेकरे तो गावैना -

बाबा हो बाबा, बाबा को रिना रे
दुवारे सिपाही बैसाय हो
दुवारे सिपाही बैसाय। ...
 

छुवाछुत :

           हिन्दु मन उखन आदिबासी मन के बगराय नीच और अछुत समझत रहैं। हिन्दु-आदिबासी भीतरे सामाजिक संपर्क ठीक नी रहे। हिन्दु मन इमन संगे जानवर से भी ज्यादा खराप व्योहर करत रहैं। इमन के जंगली, असम्य बन्दरा, राकस कहत रहैं। भाँड़-बिसार गरियात भी रहैं। (एखनो तो उमन के “आदिबासी” नी कइह के “बनबासी” कहाथीैं। इकर में बड़यंत्र आहे - अपने मन देश केर “आदिबासी” कहायक।) |
 

धमकी और लुटपाट :

                 कोनो आदिबासी अगर उमन केर अत्याचार केर बिरोध करत रहे, तो उके रकम धमकी मिलत रहे। हुकुम नी मानले पिटाइ मिलत रहे। जरिबाना कराल जात रहे। सरकार से आदिबासी इलाका केर उन्नति लगिन पैसा आले, दबाय देवाल जात रहे। 
                 गांशु मन और हिन्दु पुजारी मन टोला-टोला जाएके दाइल, लौवा, कोंहड़ा, मछरी जे पसन्द उठाए लेजात रहैं। तुरूक मन हों हाट-बाजार में आदिबासी मन से बाजार सौदा केर चीज मनके छिना-झपटी करत रहैं। तब, कमती पैसा फेइक के चइल जात रहैं। खट्टर” जाइत केर राजा, जमींदार और गांझु मन आदिवासी महिला- मन के खराप नजइर से देखात रहैं। उमन केर अपहरण होवात रहे; जात रहे। दशेरा और दोसर हिन्दु परब में आदिवासी छोंड़ी पियाय के बेपर्दा नाचेक लगिन उमन मजबुर करत रहैं। तुरूक जार-हाट लाइल उमन संगे दुरबेवहार करत रहैं।


धन्यवाद 🙏

लेखक - रोशन टोप्पो 

Researcher - Roshan Toppo & Raishan Toppo

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